शुक्रवार, 21 मई 2010

सोनिया गांधी यानि देश का चेहरा...


21 मई...दिल्ली की वीरभूमि और वीरभूमि पर देश की नहीं दुनिया की ताकतवर हस्तियों में से एक हस्ती...19 साल पहले यही वो तारीख थी...जो देश के सबसे बड़े राजनीतिक घराने की बहू के राजनीति में जाने की नींव बी...ये जानते हुए भी कि उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है...अगर कहें कि 21 मई ना होती...राजीव ना गए होते तो सोनिया शायद अब भी राजनीति से दूरी बनाए रखतीं...बहरहाल 19 साल बाद ये बहस बेमानी है क्योंकि सोनिया अपने सबसे ताकतवर किरदार में हैं...वक्त ने उन्हें भारतीय राजनीति की जरूरत बना दिया है...उससे भी बड़ी जरूरत कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार की जरूरत...जिसकी वो ऑक्सीजन हैं...सोनिया यानि सरकार सरकार यानि सोनिया...देश की हुकूमत का एक पत्ता भी खड़कने से पहले ये देखता है कि सोनिया का इशारा है या नहीं...ये भी कि उसे कब और कितना खड़कना है...यूपीए सरकार पार्ट-1 के पांच साल और पार्ट-2 का ये पहला साल...सोनिया की जिम्मेदारियां बढ़ी ही हैं और इन चुनौतियों से पार पाने की काबिलियत ही उनके कद में इजाफा भी कर रही है...अंतर्राष्ट्रीय आंकड़े उन्हें दुनिया की 50 ताकतवर महिलाओं में यूं ही नहीं गिनते...बतौर यूपीए चेयर पर्सन वो सरकार और जनता के बीच की कड़ी बन चुकी हैं...वो सरकार को सत्ता के नशे में चूर नहीं होने देतीं और जनता का भी भरोसा बनाए रखती हैं कि सरकार उसकी है और उसके भले की ही सोचेगी...यूपीए पार्ट-1 में सरकार की तीन बड़ी उपलब्धियों के पीछे सोनिया ही थीं...चाहे वो मुक्त व्यापार समझौता रहा हो चाहे न्यूक्लियर समझौता या फिर रोजगार गारंटी स्कीम...सरकार मजबूत इरादे से मैदान में उतरी तो पीछे सबसे बड़ी ताकत सोनिया ही थीं...यूपीए पार्ट-2 में भी जब महिला आरक्षण का मुद्दा आया तो ये सोनिया की ही इच्छाशक्ति थी कि अब टालमटोल बिल्कुल नहीं...सरकार वापस आगे बढी और राज्यसभा में बिल पास हुआ...जातीय जनगणना के सवाल पर भी जब सरकार ने विपक्ष की हां को हां कहा तब भी धन्यवाद सोनिया गांधी को ही दिया गया...राजनीति मजबूरियों को खुल कर कहने से रोकती है लेकिन अब राजनीतिक विरोधी भी मानने लगे हैं कि सोनिया यूपीए सरकार का मानवीय चेहरा हैं...अवाम जब सरकार से नाउम्मीद हो जाती है तब वो सोनिया की ओर देखती है क्योंकि उसे यकीन हो चला है कि उसके माथे की लकीरों को देखकर यही चेहरा है जिसके माथे पर सबसे ज्यादा सिलवटें पड़ती हैं...

मंगलवार, 9 मार्च 2010

दिल को मिला सुकून...


09 मार्च 10
देश की आधी आबादी को जिस मौके का इंतजार 14 सालों से था...वो आखिरकार आ ही गया...पुरुष प्रधान समाज में अपने हक की लड़ाई लड़ने की उसकी ताकत में अब इज़ाफा होता नजर आ रहा है...जी हां..महिला आरक्षण बिल कदम दर कदम अपनी मंजिल की तरफ बढ़ चला है...राज्यसभा की मुश्किलों से उसने पार पा लिया है...233 सदस्यों वाली राज्यसभा में 186 के भारी बहुमत से महिला आरक्षण बिल पास हो गया है...अब उसकी अगली जंग लोकसभा में होनी है...ये अलग बात है कि इस मुकाम तक पहुंचने में इस बिल ने राज्यसभा के भीतर वो सब कुछ होते देखा..जिससे देश की गरिमा को धक्का लगा...जिस तरह से बिल का विरोध कर रहे मुठ्ठी भर पुरुषों ने राज्यसभा के सभापति के आसन के पास जाकर बिल की प्रतियां फाड़ीं और माइक उखाड़ने की कोशिश की...जिस तरह से लगातार हंगामा कर रहे सांसदों को सस्पेंड किया गया...ये सब कुछ शर्मसार कर देने वाला था...संतोष इस बात का है कि संसदीय गरिमा पर कालिख पोतने वाली इन घटनाओं के बाद जो हासिल हुआ वो सार्थक है...मंजिल अभी दूर है लेकिन वहां तक पहुंचने का एहसास ही दिल को सुकून से भर देता है...लोकसभा के बाद देश की कम से कम 15 विधानसभाओं ने भी इस बिल को पास होना होगा...उसके बाद ही ये बिल राष्ट्रपति के पास ये दस्तखत होने जाएगा और फिर उसे कानून का रुतबा हासिल होगा...ये अलग बात है कि इस मंजिल का पहला पड़ाव पार करते ही देश भर में महिलाएं जश्न के माहौल मे डूब गई हैं...सही भी है...एक नई सुबह का सूरज दस्तक जो दे रहा है...

गुरुवार, 4 मार्च 2010

मौत का भंडारा....

04 मार्च 2010
बस एक लापरवाही और जिंदगियां मौत के मातम में डूब जाती हैं...हादसे होते हैं लेकिन कोई सबक नहीं लिया जाता...जिसकी गवाह हैं प्रतापगढ़ की ये तस्वीरें...जो मौत पर मातम की जीती जागती गवाह हैं...











ये नजारा कुंडा में बने राम जानकी मंदिर का है..जो गुरुवार की दोपहर चीखो-पुकार के शोर में ऐसा डूबा कि फिर उबर नहीं पाया...मंदिर से सटे बाबा कृपालु जी महाराज के आश्रम में एक भंडारे का आयोजन किया गया था...मौका था बाबा की पत्नी की बरसी का...इस कार्यक्रम का प्रचार-प्रसार दो तीन दिन पहले से ही हो रहा था...नतीजा ये हुआ कि हजारों की संख्या में लोग बाबा के आश्रम जा पहुंचे...कार्यक्रम खाने के साथ साथ कपड़े और बर्तन बांटने का भी था...लोग उत्सुकता से अपनी बारी की प्रतीक्षा कर रहे थे लेकिन जब बर्तन और कपड़े बंटने शुरू हुए तो लोग धीरज खो बैठे और धक्कामुक्की पर उतर आए...किसी का हाथ खाली ना रह जाए...इसलिए हर कोई आगे लपक कर चीजें हासिल कर लेना चाहता था लेकिन वो इस बात से अंजान थे कि उनकी ये कोशिश कितने खौफ़नाक हादसे को निमंत्रण देने वाली है...हजारों की भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बाबा के आश्रम में तैनात सुरक्षा कर्मी ही मौजूद थे क्योंकि प्रशासन से इस कार्यक्रम के लिए अनुमति नहीं ली गई थी....सुरक्षाकर्मियों ने जब लोगों पर नियंत्रण के लिए लाठियां चलाईं तो भीड़ भड़क गई और आश्रम में भगदड़ मच गई...आश्रम में चार गेट थे लेकिन उनमें से तीन बंद थे...एक गेट जो खुला था...भीड़ लाठियों से बचने के लिए उसी तरफ भागी...इसी दौरान गेट का एक हिस्सा गिर गया और उसी के साथ भीड़ का हिस्सा बने लोग भी एक एक कर जमीन पर गिरने लगे...पीछे वाले गिरे हुए लोगों को रौंद कर आगे बढ़ चले और जब ये सिलसिला रूका तो लाशों का ढेर लग चुका था और 60 से ज्यादा जिंदगियों पर मौत की मुहर लग चुकी थी...35 बच्चे और 26 महिलाएं अपने अपने परिवार में मातम की वजह बन चुके थे जबकि सैकड़ों की संख्या में लोग घायल हो चुके थे...जाहिर है...कार्यक्रम बड़ा था लेकिन इंतजाम नाकाफी थे और यही बदइंतजामी एक बड़े हादसे की वजह बन गई...हमेशा की तरह इस हादसे की जांच के लिए भी कमेटी बना दी गई है लेकिन सवाल वही है कि क्या ये कमेटी इस बात को पुख्ता कर सकती है कि इस हादसे से सबक लिया जाएगा और आगे से भगदड़ की ऐसी घटनाएं नहीं होंगी क्योंकि इतिहास तो यही कहता है कि सबक नहीं लिया जाता....


मार्च, 2010 - उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ में कृपालु महाराज के आश्रम में मची भगदड़ में 60 लोगों की जान गई.

जनवरी, 2010 - कोलकाता के पास चल रहे गंगासागर मेले में मची भगदड़ से कम से कम सात तीर्थयात्री मारे गए हैं.

दिसंबर, 2009 - गुजरात में धौराजी के श्रीनाथजी मंदिर में भगदड़ मचने से नौ लोगों की मौत हो गई और 15 से ज़्यादा घायल हैं.

सितंबर, 2008 - राजस्थान के चामुंडा मंदिर में मची भगदड़ में 224 लोगों की मौत हो गई थी.

अगस्त, 2008 - हिमाचल प्रदेश के नैना देवी मंदिर में भूस्खलन की अफ़वाह के बाद भगदड़ मच गई. इसमें 145 लोगों की मौत हो गई.

नवंबर, 2006 - उड़ीसा के पुरी में जगन्नाथ मंदिर में चार लोगों की मौत हो गई और 18 घायल हो गए. प्रत्यक्षदर्शियों का कहना था कि अधिकारियों ने मंदिर का दरवाज़ा खोलने में देर कर दी जिसके कारण भगदड़ मच गई.

जनवरी, 2005 - महाराष्ट्र के दूरवर्ती मंढारा देवी मंदिर में भगदड़ मचने से 265 लोग मारे गए. सँकड़ा रास्ता होने के कारण हताहतों की संख्या बढ़ गई. मृतकों में बड़ी संख्या महिलाओं और बच्चों की थी.

अगस्त, 2003 - नासिक में कुंभ मेले के दौरान मची भगदड़ में 30 से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई.

1986 - हरिद्वार में एक धार्मिक आयोजन के दौरान भगदड़ में 50 लोगों की मौत हो गई.

1954 - इलाहाबाद में कुंभ मेले के दौरान भगदड़ का भयान मंजर देखने को मिला. इसमें लगभग 800 लोगों की जानें गईं.

( फोटो और आंकड़े सौजन्य बीबीसी )

बुधवार, 3 मार्च 2010

जब आश्चर्य भय औऱ विस्मय में बदल गया...

03 मार्च 2010





ये नज़ारा किसी की भी आंखों को सुकून पहुंचाने के लिए काफी है...हैदराबाद में बुधवार से शुरू हुए एअर शो के दौरान इस तरह के नजारे लोग अपनी आंखों में उतार रहे थे और ये करतब दिखा रहे पायलटों की तारीफ कर हैरत जता रहे थे लेकिन इसी बीच कुछ ऐसा घटा...जिसने उनकी हैरत को भय और विस्मय में तब्दील कर दिया...इन्हीं में से एक विमान लहराता-हिचकोले खाता एक रिहाईशी इलाके में जा गिरा...तेज धमाके के साथ वातावरण में मौत का सन्नाटा पसर गया...चारों तरफ चीख-पुकार मच गई...विमान बेगमपेट हवाई अड्डे के पास बोमनपल्ली इलाके की एक तीन मंजिला इमारत पर गिरा था...हादसे में विमान के पायलट और को-पायलट की मौके पर ही मौत हो गई...जबकि चार लोग घायल हो गए...हादसे के बाद जो नजारा सामने आया वो कुछ ऐसा था...









हैदराबाद में जो ट्रेनर विमान हादसे का शिकार हुआ वो एचजेटी किरण है...ये एचजेटी विमान पायलटों के सेकेंड लेवल ट्रेनिंग के लिए इस्तेमाल होते हैं...ये एअरक्राफ्ट 2003 से ही नौसेना की एक्रोबेटिक्स टीम का अहम हिस्सा रहा है..दुनिया में सिर्फ दो देशों के पास ही नौसेना की एक्रोबैटिक्स टीम है...एक अमेरिका और दूसरा भारत...ये विमान 46 साल पुराने हैं...1964 में पहली बार इस विमान ने उड़ान भरी थी...1989 के बाद से कुल 251 किरण विमान देश की रक्षा सेवा के लिए इस्तेमाल मे हैं...1990 से अब तक इन विमानों के इंजन में 11 बार आग लग चुकी है...रक्षा विभाग के अहम सर्वे में इन विमानों में इस्तेमाल रेडियो ट्रांसमिशन की क्वालिटी को घटिया बताया गया है...एक अनुमान के मुताबिक इस एअरक्राफ्ट की अधिकतम उम्र 40 साल होती है यानि 40 साल के बाद उन्हें प्रशिक्षण के लिए इस्तेमाल में नहीं लाया जाना चाहिए लेकिन ऐसा हो रहा है...वो भी तब जब एडवांस तकनीक के हॉक विमान खरीदने का फैसला 15 से 20 साल पहेल ही हो चुका है...सवाल ये है कि आखिर इसके बावजूद इस विमान को इस्तेमाल में लाकर पायलटो की जान से खिलवाड़ क्यों किया जा रहा है...इसका जवाबदेह कौन है...नौसेना ने इस हादसे की जांच का फरमान जारी कर दिया है लेकिन क्या जांच में इस सवाल का जवाब सामने आएगा....

( सभी फोटो सौजन्य बीबीसी )

रविवार, 14 फ़रवरी 2010

कराहता हिन्दुस्तान

14 फरवरी 2010
26/11 के बाद छाई खामोशी मन में ये सवाल पैदा कर रही थी कि क्या हिन्दुस्तान को बार बार अपने नापाक इरादों से दहलाने वाले दहशतगर्द शांत हो गए हैं...क्या हिन्दुस्तान की सरकार का सख्त रुख इस बार उनके इरादों को डिगाने में कामयाब हो गया है...क्या अब अमन के इस देश की आबो-हवा में आतंक के बारुद की गंध नहीं आएगी...क्या अब लोग बेखौफ होकर अपने देश में रह सकेंगे...इन सारे सवालों का जवाब 13 फरवरी की शाम पुणे में हुए धमाकों के बाद ही मुझे हासिल हो गया...एक बार फिर आतंक से निपटने के भारत के तल्ख लहजे को मजाक में उड़ा दिया गया...यानि आतंक के आकाओं को ये पूरा भान है कि भारत सिर्फ घुड़की दे सकता है..कर कुछ नहीं सकता...कुछ हद तक ये सही भी लगता है क्योंकि अगर वो कुछ कर सकता तो शायद पुणे की बेकरी में खून के छींटे और मांस के लोथड़े देखने को ना मिलते...मै नहीं जानता राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भारत की क्या मजबूरी है जो उसे आतंक और आतंक के सरपरस्तों से निपटने में हिचकिचाहट होती है...मैं नहीं जानता कि क्यों हर बार दहशतगर्दों को मुंहतोड़ जवाब देने की हुंकार वक्त के साथ साथ गर्द और गुबार में खो जाती है...क्यों हम अपनी गलतियों से सबक नहीं लेते और मासूमों की जान का सौदा कर बैठते हैं...मैं नहीं जानता लेकिन इतना जरूर जानता हूं कि हर बार सियासत की कमजोरी की कीमत एक आम हिन्दुस्तानी को चुकानी पड़ती है...इसकी गवाह है...भारत की सरजमीं पर उसी के बाशिंदों के खून से लाल हुई और अब इतिहास बन चुकी दहशत की ये इबारतें...

( आंकड़े बीबीसी हिन्दी के सौजन्य से...)

पुणे, फ़रवरी 13, 2010: पुणे में जर्मन बेकरी में हुए धमाके में पाँच महिलाओं और कुछ विदेशियों समेत नौ लोग मारे गए और 45 घायल हुए.

मुंबई, नवंबर 26, 2008: मुंबई में तीन जगहों - ताज और ऑबराय होटलों और विकटोरिया टर्मिनस पर हुए चरमपंथी हमले तीन दिन तक चले और इनमें लगभग 170 लोग मारे गए जबकि 200 अन्य घायल हो गए.

असम, अक्तूबर 30, 2008: असम में एक साथ 18 जगहों पर हुए बम धमाकों में 70 से अधिक लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हो गए.

इंफ़ाल, अक्तूबर 21, 2008: मणिपुर पुलिस कमांडो परिसर पर हुए हमले में 17 लोग मारे गए.

मालेगांव, सितंबर 29, 2008: महाराष्ट्र के मालेगांव में एक वाहन में बम धमाके के कारण पाँच लोग मारे गए.

मोदासा, सितंबर 29, 2008: गुजरात के मोदासा में एक मस्जिद के पास हुए धमाके में एक व्यक्ति मारा गया.

दिल्ली, सितंबर 27, 2008: दिल्ली में महरौली के बाज़ार में फेंके गए एक देसी बम हमले में तीन लोग मारे गए.

दिल्ली, सितंबर 13, 2008: दिल्ली में अलग-अलग जगहों पर हुए बम धमाकों में कम के कम 26 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए.


अहमदाबाद, जुलाई 26, 2008: दो घंटे के भीतर 20 बम विस्फोट होने से 50 से अधिक लोग मारे गए.

बंग्लौर, जुलाई 25, 2008: एक छोटे बम धमाके में एक व्यक्ति मारा गया.

जयपुर, मई 13, 2008: शहर में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 68 लोग मारे गए और अनेक घायल हुए.

रामपुर, जनवरी 1, 2008: उत्तर प्रदेश के रामपुर में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के कैंप पर हुए हमले में आठ लोग मारे गए.

लखनऊ, फ़ैज़ाबाद, वाराणसी, नवंबर 23, 2007: उत्तर प्रदेश के तीन शहरों में हुए धमाकों में 13 मारे गए कई घायल हुए.
अजमेर, अक्तूबर 11, 2007: राजस्थान के अजमेर शरीफ़ में हुए धमाके में दो मारे गए और अनेक घायल हुए.

हैदराबाद, अगस्त 25, 2007: आंध्र प्रदेश के हैदराबाद में हुए धमाके में 35 मारे गए और कई घायल हुए.

हैदराबाद, मई 18, 2007: हैदराबाद में मक्का मस्जिद धमाके में 13 लोग मारे गए.

समझौता एक्सप्रेस, फ़रवरी 19, 2007: भारत और पाकिस्तान के बीच चलने वाली समझौता एक्सप्रेस में हरियाणा में धमाके, 66 यात्री मारे गए.

मालेगांव, सितंबर 8, 2006: महाराष्ट्र के मालेगांव में तीन धमाकों में 32 लोग मारे गए और सौ से अधिक घायल हुए.

मुंबई, जुलाई 11, 2006: मुंबई में हुए सिलसिलेवार बम धमाकों में 170 लोग मारे गए और 200 घायल हो गए.

शुक्रवार, 11 दिसंबर 2009

तेलंगाना को जानो...

12 दिसम्बर 09
पिछले कुछ दिनों से पृथक तेलंगाना राज्य को लेकर पूरे देश में जबरदस्त हलचल मची हुई है.आंध्र प्रदेश जल रहा है तो राजनीतिक हलके भी सुलग रहे हैं.कहीं हां ते कहीं ना का शोर कानों को परेशान कर रहा है.इसी परेशानी के बीच ये जानने की इच्छा जोर मारने लगी कि आखिर तेलंगाना है क्या और क्यों इसे लेकर इतना शोर शराबा मचाया जा रहा है.सवालों के जवाब तलाशने के लिए नेट पर बैठा तो बीबीसी हिन्दी में ये लेख मिला.सोचा ब्लागर भाईयों के साथ ये जानकारी शेयर की जाए.इसलिए पूरा लेख नीचे प्रकाशित कर रहा हूं.

तेलंगाना क्या है?

अभी जिस क्षेत्र को तेलंगाना कहा जाता है,उसमें आंध्र प्रदेश के 23 ज़िलों में से 10 ज़िले आते हैं.मूल रूप से ये निज़ाम की हैदराबाद रियासत का हिस्सा था.इस क्षेत्र से आंध्र प्रदेश की 294 में से 119 विधानसभा सीटें आती हैं.

तेलंगाना आंध्र का हिस्सा कब बना?

1948 में भारत ने निज़ाम की रियासत का अंत कर दिया और हैदराबाद राज्य का गठन किया गया.1956 में हैदराबाद का हिस्सा रहे तेलंगाना को नवगठित आंध्र प्रदेश में मिला दिया गया.निज़ाम के शासनाधीन रहे कुछ हिस्से कर्नाटक और महाराष्ट्र में मिला दिए गए.भाषा के आधार पर गठित होने वाला आंध्र प्रदेश पहला राज्य था.

तेलंगाना आंदोलन कब शुरू हुआ?

चालीस के दशक में कामरेड वासुपुन्यया कि अगुवाई में कम्‍युनिस्टों ने पृथक तेलंगाना की मुहिम की शुरूआत की थी.उस समय इस आंदोलन का उद्देश्य था भूमिहीनों कों भूपति बनाना.छह वर्षों तक यह आंदोलन चला लेकिन बाद में इसकी कमर टूट गई और इसकी कमान नक्सलवादियों के हाथ में आ गई.आज भी इस इलाक़े में नक्सलवादी सक्रिय हैं.1969 में तेलंगाना आंदोलन फिर शुरू हुआ था.दरअसल दोनों इलाक़ों में भारी असमानता है. आंध्र मद्रास प्रेसेडेंसी का हिस्सा था और वहाँ शिक्षा और विकास का स्तर काफ़ी ऊँचा था जबकि तेलंगाना इन मामलों में पिछड़ा है.तेलंगाना क्षेत्र के लोगों ने आंध्र में विलय का विरोध किया था. उन्हें डर था कि वो नौकरियों के मामले में पिछड़ जाएंगे.अब भी दोनों क्षेत्र में ये अंतर बना हुआ है. साथ ही सांस्कृतिक रूप से भी दोनों क्षेत्रों में अंतर है.तेलंगाना पर उत्तर भारत का ख़ासा असर है.

1969 में क्या हुआ था?

शुरुआत में तेलंगाना को लेकर छात्रों ने आंदोलन शुरू किया था लेकिन इसमें लोगों की भागीदारी ने इसे ऐतिहासिक बना दिया.इस आंदोलन के दौरान पुलिस फ़ायरिंग और लाठी चार्ज में साढे तीन सौ से अधिक छात्र मारे गए थे.उस्मानिया विश्वविद्यालय इस आंदोलन का केंद्र था.उस दौरान एम चेन्ना रेड्डी ने 'जय तेलंगाना' का नारा उछाला था लेकिन बाद में उन्होंने अपनी पार्टी तेलंगाना प्रजा राज्यम पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया.इससे आंदोलन को भारी झटका लगा.इसके बाद इंदिरा गांधी ने उन्हें मुख्यमंत्री बना दिया था.1971 में नरसिंह राव को भी आंध्र प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया गया था क्योंकि वे तेलंगाना क्षेत्र के थे.

के चंद्रशेखर राव की क्या भूमिका है?
नब्बे के दशक में के चंद्रशेखर राव तेलुगु देशम पार्टी के हिस्सा हुआ करते थे.1999 के चुनावों के बाद चंद्रशेखर राव को उम्मीद थी कि उन्हें मंत्री बनाया जाएगा लेकिन उन्हें डिप्टी स्पीकर बनाया गया.वर्ष 2001 में उन्होंने पृथक तेलंगाना का मुद्दा उठाते हुए तेलुगु देशम पार्टी छोड़ दी और तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर दिया.2004 में वाई एस राजशेखर रेड्डी ने चंद्रशेखर राव से हाथ मिला लिया और पृथक तेलंगाना राज्य का वादा किया लेकिन बाद में उन्होंने इस पर ध्यान नहीं दिया. इसके बाद तेलंगाना राष्ट्र समिति के विधायकों ने इस्तीफ़ा दे दिया और चंद्रशेखर राव ने भी केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफ़ा दे दिया था.

तेलंगाना राज्य का गठन कैसे होगा?

ये प्रक्रिया काफ़ी जटिल है.सबसे पहले राज्य विधानसभा इस आशय का प्रस्ताव पारित करेगी फिर राज्य के बंटवारे का एक विधेयक तैयार होगा और संसद के दोनों सदनों में ये पारित होगा.इसके बाद राष्ट्रपति ये राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए जाएगा. इसके बाद संसाधनों के बंटवारे की कठिन प्रक्रिया शुरू होगी.

सोमवार, 29 जून 2009

तेरा आंचल जो ढल गया होता....

29 जून 2009
तेरा आंचल जो ढल गया होता
रुख हवा का बदल गया होता
देख लेता जो एक झलक तेरी
चांद का दम निकल गया होता
झील पर खुद ही आ गए वरना
तुमको लेने कमल गया होता
पी जो लेता शराब आंखों से
गिरते गिरते संभल गया होता
क्यों मांगते वो आईना मुझसे
मैं जो लेकर गज़ल गया होता
तेरा आंचल जो ....
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